सुख और दुख

  

 सुख और दुख क्या है सुख और दुख में से कोई भी शाश्वत नहीं है अर्थात कायम नहीं है दोनों ही एक समय पर विलीन हो जाते हैं हमें किसी सुख का अनुभव थोड़े समय तक ही होता है और दुख का अनुभव भी थोड़े समय तक ही होता है

 जब तक हम किसी वस्तु व्यक्ति या पद को सुख मानेंगे तो हमें कभी भी सुख मिल ही नहीं सकता क्योंकि सुख कभी भी पाया नहीं जा सकता

आज तक हम सुख और दुख को कभी जान ही नहीं सके सुख और दुख मन के एक भाव है जिस वस्तु में हमारी रुचि है वह वस्तु हमें प्राप्त हो जाए तो हमें सुख की अनुभूति होती है और अगर वही वस्तु हमें प्राप्त ना हो ऐसी कोई वस्तु जो हम स्वीकारना ना चाहते हो वह हमें प्राप्त हो जाए तो हमें दुख की अनुभूति होती है सुख और दुख दोनों में से कोई भी सत्य नहीं है कहने का मतलब है कि जो हमें लगता है कि "यह हमारा सुख है और यह हमारा दुख है तो दोनों ही हमारे भ्रम है" अगर वास्तव में कोई हमारे लिए सुख होता तो वह सबके लिए सुख होता और हमारे लिए जो दुख होता वह सबके लिए दुख होता पर ऐसा नहीं है

 क्योंकि व्यक्ति के अनुसार व्यक्ति के भाव अलग-अलग है जो व्यक्ति को एक वस्तु या व्यक्ति को सुख समझता है वही दूसरा व्यक्ति उन्हें दुख समझता है सुख और दुख तो केवल मनुष्य के भाव है 

अगर किसी छोटे बच्चे को कोई बड़ी खिलौने की गाड़ी दे दे तो उस बच्चे के लिए वह खिलौना ही संसार का सर्वोच्च सुख है और अगर किसी बड़े व्यक्ति को हम वही खिलौने की गाड़ीजैसी वास्तविक गाड़ी दे दे तो उस व्यक्ति के लिए वही संसार का सर्वोच्च सुख है पर जब हम दोनों वस्तुओं को विरुद्ध व्यक्ति को देंगे तो बच्चा कहेगा कि मैं यह बड़ी वाली गाड़ी को प्राप्त कर कर क्या करूं? और बड़ा व्यक्ति कहेगा कि मैं यहां खिलौने की गाड़ी को प्राप्त कर के क्या करूं? 

 अगर वास्तविकता में सुख वह गाड़ी में होता तो दोनों के लिए होता बच्चे के लिए भी और बड़े व्यक्ति के लिए भी इसलिए हमें सुख और दुख को समझना चाहिए कि वास्तविकता में यह है? क्या है भी या फिर हमारा यह बहुत बड़ा ही भ्रम है

 सुख और दुख की अनुभूति हमें तभी होती है जब हम किसी भी प्रकार का संबंध स्थापित करते हैं बच्चे ने यह संबंध स्थापित किया कि यह गाड़ी मेरी है तो उसे सुख का अनुभव हुआ और वैसे ही बड़े व्यक्ति ने बड़ी गाड़ी के साथ संबंध स्थापित किया तो उसे सुख का अनुभव हुआ

 वैसे ही हमारे किसी निकट के व्यक्ति हमसे दूर जाए तो हमें दुख का अनुभव होता है क्योंकि हम उससे जुड़े हैं - संबंध स्थापित किया है पर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे हम जानते भी ना हो अखबार में उसके मृत्यु के समाचार हो तो हमें वह व्यक्ति के विषय में दुख की अनुभूति नहीं होती है जो हमें अपने निकट के व्यक्ति को खोने की होती है क्योंकि हम उससे जुड़े नहीं है "जो व्यक्ति आपसे भौतिक रूप से दूर है वह व्यक्ति आत्मिक रूप से आपसे कहां दूर है? आपके निकट ही तो है और जो व्यक्ति आपसे भौतिक रूप से बहुत निकट है वह व्यक्ति आत्मिक रूप से आपसे कहां निकट है?" इस वाक्य पर आप सब तर्क अवश्य करें


सुख और दुख जैसी कोई वस्तु होती ही नहीं है हमारे चित् स्वरूप को जानना ही सर्वश्रेष्ठ आनंद है तभी हम इस भ्रम की दुनिया से परे हो सकेंगे

 "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" अर्थात ब्रह्म ही सत्य है यह संपूर्ण जगत, यह मोह माया सब मिथ्या है आत्मा का अंतिम लक्ष्य तो ब्रह्म में विलीन हो जाना ही है अर्थात जुड़ जाना है और ब्रह्म क्या है? "तुम ही हो - मैं ही हूं, तुम भी नहीं हो - मैं भी नहीं हूं, तुम सर्वत्र हो - मैं भी सर्वत्र हूं अर्थात 'तुम ही में हूं और मैं ही तुम हो' " यह वाक्य बहुत ही तर्कबद्ध है और मैंने अपने विचारों और तर्क से इस वाक्य की रचना की है अगर आप इस वाक्य को समझ जाओगे तो आप सुख-दुख के रहस्य को भी अवश्य ही समझ पाओगे

 तो सुख दुख की परवाह किए बिना ब्रह्म में अपना ध्यान लगाए और सत्य की प्राप्ति करें क्योंकि "सत्य ही सर्वत्र है, सत्य ही सर्वत्र व्याप्त है और सत्य ही सब कुछ है"

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