विचार विज्ञान

                                  हमारे शास्त्रों में विचार का बहुत महत्व बताया गया है।हमारा मनोविज्ञान भी इसके बारे में संशोधन कर चुका है।हमारे विचार सर्वत्र व्याप्त है जो हम सोचते रहते हैं। उसका बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी हमें प्रश्न होता है कि  विचार का उद्भव कैसे होता है? विचार हमारे इंद्रियों पर आधारित रहते हैं। इंद्रियां पांच प्रकार की होती है आंख,नाक,कान,जीभ,त्वचा।

                                  यह इंद्रियां ही विचार के कारण है। विचार हमारे सांसो पर आधारित रहते हैं। विचार दो तरह के होते हैं: सकारात्मक और नकारात्मक। हम सकारात्मक विचार करते हैं तो उसका सकारात्मक परिणाम हमको प्राप्त होता है और जब हम नकारात्मक विचार करते हैं तो हमें उसका नकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है। यह संपूर्णता हम पर आधार रखता है कि हम किस प्रकार के विचार करें। 

                                  इसके पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है जो शब्द हम बोलते हैं उसका ब्रह्मांड में एक बहुत ही गहरा  प्रभाव पड़ता है।  इसलिए हमें इतना ही बोलना चाहिए जितना जरूरी है। ज्यादा बोलने से हमारे शरीर की ऊर्जा बर्बाद होती है।आकर्षण का सिद्धांत विचार के नियम पर ही आधारित है। इसलिए हमें वही सोचना चाहिए जो हम प्राप्त करना चाहते हैं और जो हम बनना चाहते हैं।

                                  हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जैसा आहार वैसा विचार वैसे ही जैसा अन्न वैसा मन। भोजन करते समय हम जैसे विचार करते हैं वैसे ही हमारे मन में उसके जन्म होते हैं। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने भोजन करते समय मौन  रखने का निर्देश किया है। मौन रखने का मतलब यह नहीं है के मुख से कुछ ना बोले बल्कि यह है कि मन से कुछ ना बोले  मतलब कुछ विचार ना करें।

                                  जो हम देखते हैं उस दृश्य का हमारे मन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण ही हमें विचार आते हैं। सभी तरह से देखा जाए तो हमारी इंद्रियां ही हमारे विचार के कारण है। इसलिए इंद्रियों पर  संयम ही विचारों पर संयम है। 

                                  आपने यह अनुभव किया होगा की आप किसी व्यक्ति को याद कर रहे हो और तुरंत ही उसका फोन आए अथवा तो वह व्यक्ति खुद आपके सामने आ जाए। यह  विचार के कारण ही संभव है तो अब आप समझ गए होंगे विचार  की शक्ति।

                                  हमने कई बार ऐसा अनुभव किया है कि कोई व्यक्ति जो नकारात्मक सोच रखने वाला हो हमारे पास आ जाए और बैठ जाए तो हमारे  मनमंडल में भी खलबली मच जाती है और बिल्कुल उसके विपरीत कोई सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति हमारे पास आकर बैठ जाए तो हमारे विचार बहुत ही  सकारात्मक हो जाते हैं।

                                  हमें यह सोचकर बहुत ही आश्चर्य होता है कि 100 में से 90% रोग मानसिक होते हैं। यह भी विचारों के बढ़ जाने के कारण ही है।

                                  विदेश में  इसके ऊपर एक बहुत बड़ा प्रयोग किया गया था एक व्यक्ति  गंभीर रूप से बीमार था और डॉक्टरों ने उसे 3 दिन तक सामान्य दवा देना शुरू कर दिया और चौथे दिन  अचानक ही वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया डॉक्टरों  के आश्चर्य का पार ना रहा और यह लेख बहुत ही प्रसिद्ध हुआ था।


अंततः कहने का मतलब यही है कि हमें  अपने विचारों पर संयम रखना चाहिए

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